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नज़्म
किस से मोहब्बत है
कोई मेरे सिवा उस का निशाँ पा ही नहीं सकता
कोई उस बारगाह-ए-नाज़ तक जा ही नहीं सकता
असरार-उल-हक़ मजाज़
ग़ज़ल
'इश्क़ की चाँदनी रातें मुझे याद आती हैं
उम्र-ए-रफ़्ता को मिरी मुझ से मिला दे आ कर
अख़्तर शीरानी
नज़्म
मौत
उम्र-ए-रवाँ के साथ वो रहती है उम्र-भर
बस एक बार रूठ के जाती है वक़्त पर